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Sunday, November 6, 2016


वो भी चेहरों में ढूँढता रहा

                                                     :-  परमजीत सिहँ
वो भी चेहरों में ढूँढता रहा,
मैं भी चेहरों में  ढूँढती रही,
वो भी शहरों में घूमता रहा,
मैं भी शहरों में घूमती रही  ॥१॥

दिल के दरवाज़े पर जो पड़ी थी दस्तक,
न उसने सुनी और न मैंने ही,
वो भी आँखें मूँदता रहा,
मैं भी आँखें मूँदती रही,
वो भी चेहरों में ढूँढता रहा,
मैं भी चेहरों में ढूँढती रही ॥२॥

हाले-ए-दिल जो बयाँ था करना,
न वो कर सका, और न मैं,
वो भी मौके ढूंढता रहा,
मैं भी मौके ढूंढती रही,
वो भी चेहरों में ढूँढता रहा,
मैं भी चेहरों में ढूँढती रही ॥३॥

के अब जो गुज़ारी है तन्हा,
उसने भी और मैंने भी,
वह भी तस्वीरे चूमता रहा,
मैं भी तसवीरें चूमती रही,
वो भी चेहरों में ढूँढता रहा,
मैं भी चेहरों में ढूँढती रही ॥४॥

Friday, August 9, 2013

देश आज़ाद, पर लोग गुलाम !!!

                                                           :-  परमजीत सिहँ
देश आज़ाद, पर लोग गुलाम,
सज़दा-ए-ख़ौफ सरेआम है,
बेबस,धूमिल सच्च पड़ा इक ओर,
झूठ का परचम लहरहाता सुबह-शाम है ।।१।।

शोर हो इतना, कि बस कुछ और न हो,

फ़रेब की ऐसी रात, जिसकी फ़िर भोर न हो,
बिका अख़बार, बिका थानेदार,
शर्मसार इंसानियत का नाम है,
बेबस,धूमिल सच्च पड़ा इक ओर,
झूठ का परचम लहरहाता सुबह-शाम है ।।२।।

गुमराह करो इतना, कि कोई राह न दिखे,

धर्म-जात का सौदा सरे बाज़ार बिके,
बिका पण्डित, बिका मुल्ला,
बड़ा सस्ता यहाँ ईमान है,
बेबस,धूमिल सच्च पड़ा इक ओर,
झूठ का परचम लहरहाता सुबह-शाम है ।।३।।

कला बेपरवाह नहीं, सियासती आग़ोश है

कुचली हर वो आवाज़, जिसमे बू-ए-सरफ़रोश है
बिका कलाकार, बिका पुरुस्कार,
तस्वीरों में अब कहाँ ज़मीर-ओ-जान है,
बेबस,धूमिल सच्च पड़ा इक ओर,
झूठ का परचम लहरहाता सुबह-शाम है ।।४।। 
सोच पर लगी इन बेड़ीयों से, समझ ही आज़ाद कर पायेगी,
धर्म-जात और रूढ़ीवाद वरना यूँ ही देश को खाएगी,
स्वछंद समीर, बहे सच्च का नीर,
फिर रोशन मेरा वतन-ओ-ज़हान है।।५।।
बेबस,धूमिल सच्च पड़ा इक ओर,
झूठ का परचम लहरहाता सुबह-शाम है……
अधिकार क्षेत्र यह किस का है
                                                          :-  परमजीत सिहँ
जल गयी वो, मर गयी वो.
उठा लो सामान यह जिसका है,
कोतवाल से पूछो जा कर,
अधिकार क्षेत्र यह किस का है ।।१।।

ख़ून से लथ पथ थी काया,
कोई क्यूँ न निकट आया,
चीत पुकार व्यर्थ हुई सब,
यहाँ कोई न इन्सान दिखता है,
कोतवाल से पूछो जा कर,
अधिकार क्षेत्र यह किस का है ।।२।।

क्यूँ मन्दिरों में है देवी की मूरत,
धुमिल है जब नारीत्व की सूरत ,
अग्नि  परिक्षा के बिना क्यूँ,
रघुवर का भरोसा नहीं टिकता है,
कोतवाल से पूछो जा कर,
अधिकार क्षेत्र यह किस का है ।।३।।

जिसके यहाँ लगी है आग,
रहेगा बस उसे ही याद,
भूलेगा शमशान, भूलेगा ज़हान
देखो ख़बरनामा यह कब तक बिकता है,
कोतवाल से पूछो जा कर,
अधिकार क्षेत्र यह किस का है ।।४।।

निर्भय तेरी यह कुर्बानी, यूँ ही व्यर्थ न जायेगी,
निर्भय होगा नारी जीवन,ऐसी सुबह फिर आयेगी
बदलनी होगी सोच समाज की,
जिसे नारी में बस जिस्म ही जिस्म दिखता है,
कोतवाल से पूछो जा कर,
अधिकार क्षेत्र यह किस का है ।।४।।
सच है, मिटना मरना होगा !!!
                                                        :-  परमजीत सिहँ
माना सिंधु बहुत गहरा है,
यत्न स्वयं पर करना होगा,
मोती की जो चाह है मन में,
ढूब के पार उबरना होगा,
करना अगर कुछ हासिल जीवन में,
सच है, मिटना मरना होगा.
आसान राहें कब मन्ज़िल तक जाती है,
भेड़ बकरीयां ही झुण्ड  बनाती हैं,
मन्ज़िल की जो चाह है मन में,
सिहँ सा निडर विचरना होगा,
करना अगर कुछ हासिल जीवन में,
सच है मिटना मरना होगा.
क्यूँ सुनता औरों की बातें
भटके हैं, सबको भटकाते,
फ़ूलों की जो चाह है मन में,
पहले, काटों से दामन भरना होगा,
करना अगर कुछ हासिल जीवन में,
सच है मिटना मरना होगा.
नहीं करना है तो, हज़ार है कारण,
गिनते रहो, रहो साधारण
भय भरम सब छोड़ ऐ बन्धू
कर्म परायण बनना होगा,
करना अगर कुछ हासिल जीवन में,
सच है मिटना मरना होगा.
मुफ्त का करोबार कहाँ चलता है,
ज़ीवन बाज़ार, यहाँ सब मिलता है,
पर, जो ख़रीद की चाह है मन में,
फिर मोल अदा तो करना होगा,
करना अगर कुछ हासिल जीवन में,
सच है मिटना मरना होगा.
देख ले बापू ग़ौर से
                                                   :-  परमजीत सिहँ
देख ले बापू ग़ौर से,
क्या सुने है किसी और से ,
न , लक्ष्मी नहीं हूँ मैं ,
जो हर दिपावली पूजी जाऊँगी,
लोभ, प्रलोभ न बाँध तू मुझसे,
कि, धन की बरखा लाऊँगी,
भरम, लालच का यह पोटला,
बाँध तू किसी और से,
देख ले बापू ग़ौर से ।।१।।
चंडी,दुर्गा का न दे नाम मुझे,
जो महिषासुर  से लड़ जाऊँगी,
आ रही हूँ मैं बेटी बनकर ,
बेटी का फ़र्ज़ निभाऊँगी,
नन्हें कदमों की आहट को,
तोड़ न जीवन डोर से ,
देख ले बापू ग़ौर से ।।२।।
धन पराया न मोहे जान तू,
तोहे बेटों से बड़ कर चाहूँगी,
पूत, कपूत हो सके हैं,
मैं अन्त तक साथ निभाऊँगी,
शिक्षा का कन्यादान दे मोहे तू ,
बचा इस अंधकार घनघोर से,
देख ले बापू ग़ौर से ।।३।।
जन्म भी जग का मो से ही है,
मारे भी जग मोको ही है,
ममता का वरदान भी मैं ही,
अभिशाप भी जाने  मोको ही है,
बदल डाल दुनिया की रीति,
मैं, विनती करुँ हथ जोड़ के,
देख ले बापू ग़ौर से ।।४।।
मिलो सब से दिल खोल के !!
                                                                :-  परमजीत सिहँ
मिलो सब से दिल खोल के, 
विचारों को अपनें बहने दो,
कुछ अपनी तुम कहो,
कुछ औरों को कहने दो,
गुमसुम यूं न तुम बैठो,
गुफ़्तगू चलते रहने दो ।।१।।
किताबों में ज्ञान कहाँ रखा है,
जान लो उनसे जिन्होनें तजुर्बा चखा है,
कुछ सीखो, कुछ सिखाओ,
कुछ पूछो, कुछ बताओ,
बातें जो दिल में दबी है तेरे,
ज़बान से उसको कहने दो
मिलो सब से दिल खोल के, 
विचारों को अपने बहने दो ।।२।।
दुख का भार कह डालो, कहने से कम होता है,
सुख के पलों को बाँट लो, बाँटने से नहीं खोता है,
कुछ संभलो तुम, कुछ औरों को संभालो,
गले लगो, गले से लगा लो
जीवन के हर पल को,
ज़िन्दादिल रहने दो
मिलो सब से दिल खोल के, 
विचारों को अपने बहने दो ।।३।।
सूरज का ग़ुरूर देखो क्या देता पैग़ाम है,
सब कुछ एक सा नहीं रहता,कुछ देर में होनी शाम है,
कुछ समझो, कुछ समझाओ,
मान जाओ, या कुछ मनवाओ
प्यार से सब कुछ हल होता है,
यह मन्त्र जीवन संग रहने दो
मिलो सब से दिल खोल के, 
विचारों को अपने बहने दो ।।४।।

जल, जल रहा है (burning of water)
                                                        :-  परमजीत सिहँ 
भूल गये हैं अपनों को,
जाने कौन हमें छल रहा है,
चिंता का यह विषय है,
कि अपनी संस्कृति का मह्त्तव गल रहा है,
लगता है मुझे ऐसे,
जैसे कि जल, जल रहा है
सच्चा ज्ञान कोई ले नहीं रहा,
घोर अज्ञान पल रहा है,
सच्चे संगीत से अपरीचित हैं,
विदेशी शोर चल रहा है,
लगता है मुझे ऐसे,
जैसे कि जल, जल रहा है.
मन को सुकून देती आवाज़ नहीं,
अशलीलता का कैसा दौर है,
आज है गाना ,कल रवाना,
क्योंकि, यह दिल माँगे मोर है,
भटके हैं, या भटकाया है,
यही सवाल इस मन में खल रहा है,
लगता है मुझे ऐसे,
जैसे कि जल, जल रहा है.
दिल और रुह से जो जोड़े, उसका सत्कार करो
पहचानों सच्चा संगीत, और उससे प्यार करो
वक़्त है अब भी , संभाल लो!!,
यह वक़्त, हाथों से निकल रहा है,
लगता है मुझे ऐसे, 
जैसे कि जल, जल रहा है.